06-04-2023, 10:01 AM
मालदा से 26 वर्षीय बेटे अशरफ के साथ चेन्नई जा रहीं शबाना बेगम को जैसे ही बेटे की लाश दिखती है, तो वह बेसुध हो जाती हैं। लोग उन्हें पानी पिलाते हैं, तो होश में आने के बाद फिर रोने लगती हैं और बताती हैं कि घर पर बहू और दो छोटे-छोटे पोते हैं।
![[Image: odisha-train-accident_1685762753.jpeg?w=674&dpr=1.0]](https://staticimg.amarujala.com/assets/images/2023/06/03/750x506/odisha-train-accident_1685762753.jpeg?w=674&dpr=1.0)
मौत के मुंह से वापस आए लोग कहते हैं कि मानो देवदूतों ने आकर उन्हें बचाया है। वहां, हर शख्स की अपनी कहानी है, जिसमें वह खुद भी एक किरदार है और जो खौफनाक मंजर देखा, उसे शायद ताउम्र नहीं भुला पाएं। हर तरफ क्षत-विक्षत शव और घायलों की चीख-पुकार के बीच दो-ढाई साल का बच्चा मां की लाश से चिपककर रोते-रोते दम तोड़ देता है।
जमीन पर लाशों के ढेर में बेटे को तलाशते हुए एक बाप की आंखें पथरा गईं। एक पल पहले साथ में बैठकर जिस बहन के साथ घर-परिवार की बातें हो रही थीं, उस भाई के हाथ में अब बस बहन का हैंड बैग बचा है। एक मां 26 साल के बेटे की लाश देखकर बेसुध पड़ी है। एक पत्नी बदहवासी में आंसुओं की धारा के बीच पति को तलाश रही है। लोगों की आपबीती सुनकर दिल दहल जाता है, कलेजा बाहर आने लगता है और दिमाग सुन्न रह जाता है।
बीच में ही छोड़ गया
मालदा से 26 वर्षीय बेटे अशरफ के साथ चेन्नई जा रहीं शबाना बेगम को जैसे ही बेटे की लाश दिखती है, तो वह बेसुध हो जाती हैं। लोग उन्हें पानी पिलाते हैं, तो होश में आने के बाद फिर रोने लगती हैं और बताती हैं कि घर पर बहू और दो छोटे-छोटे पोते हैं। बेटे की लाश देखते हुए बस यही शिकायत करती हैं, यूं बीच में छोड़कर क्यों चला गया।
दूसरी जिंदगी मिली
हादसे में सुरक्षित बचे एक परिवार ने बताया कि उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा है कि वे बच गए। पति-पत्नी और बेटी को एक खरोंच भी नहीं आई।
ऐसा मंजर नहीं देखा
एक यात्री ने बताया शाम करीब 7 बजे जब हादसा हुआ, तो ज्यादातर लोग जगे हुए ही थे। तेज धमाके और झटके के साथ ट्रेन रुकी। समझ ही नहीं आया कि क्या हुआ है। नीचे उतरकर देखा, तो रूह कंपा देने वाला मंजर था।
ओडिशा के बालासोर के सुगो के रहने वाले रामचंदर लाशों के ढेर में अपने 8 वर्ष के बच्चे को तलाश रहे थे। उन्होंने बताया कि वे बेटे को लेकर कोरोमंडल एक्सप्रेस से चेन्नई जा रहे थे। रात से बेटे की तलाश कर रहे हैं, लेकिन कहीं मिल ही नहीं रहा है। पुलिस से पूछा, तो उन्होंने यहां लाशों के ढेर की तरफ भेज दिया है। इसके बाद रामचंदर पथराई आंखों से फिर लाशों के चेहरे देखने लगते हैं। उनकी जुबां पर बार-बार बस यही आता है कि कहां है...रे, मिल ही नहीं रहा है।
हमें देवदूतों ने बचाया
बिहार के मधेपुरा के सनी कहते हैं। वे जनरल कोच में सवार थे। आस-पास के किसी भी शख्स को नहीं जानते। जब हादसा हुआ, तो उन्हें लगा कि वे शायद आज नहीं बच पाएंगे। लेकिन, मानो कोई करिश्मा हुआ हो और किसी देवदूत ने आकर उन्हें बचाया हो। आसपास के ज्यादातर लोग नहीं बच सके। सनी ने बताया कि ट्रेन से निकलने के बाद वे बेहोश हो गए थे, जब आंखें खुलीं, तो अस्पताल में थे। उन्हें हल्की चोट आई है।
बालासोर अस्पताल में भर्ती जगदेब पात्रा ने बताया कि हादसे में उनके दोनों हाथ टूट गए हैं। वे चेन्नई जा रहे थे। मुकेश पंडित भी घायल हैं। बताया, वह चेन्नई जाने के लिए कोरोमंडल एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे थे, जब हादसा हुआ, वह तभी बेहोश हो गए थे। होश आया तो बहुत ज्यादा दर्द महसूस कर रहे थे।
मौत का हाहाकार...मुर्दाघर में शवों के ढेर
मौत का हाहाकार भी छाया हुआ है। सफेद कपड़े में लिपटे शवों के ढेर अस्पताल के मुर्दाघर में नजर आ रहे हैं। इनमें से अधिकतर की पहचान नहीं हो सकी है। रेल सेवा रुकने व बाधित रहने से अधिकतर के रिश्तेदार बालासोर नहीं पहुंच पा रहे हैं। पश्चिम बंगाल से कई लोग अस्पतालों और मुर्दाघरों में पहुंच कर अपने परिजनों व मित्रों को बदहवासी में तलाश रहे हैं। साथ में प्रार्थना भी कर रहे हैं, वे किसी तरह जीवित मिल जाएं।
सिर्फ पहली ट्रेन के डिब्बे पलटते तो नहीं होती इतनी बड़ी दुर्घटना
इंटीग्रल कोच फैक्टरी, चेन्नई के पूर्व महाप्रबंधक सुधांशु मणि ने प्रथमदृष्टया दोनों लोको पायलटों की किसी भी गलती से इन्कार किया। उन्होंने कहा, बड़े पैमाने पर दुर्घटना का प्राथमिक कारण पहली ट्रेन के डिब्बों का पटरी से उतरना और उसी वक्त दूसरी दिशा से आ रही तेज रफ्तार अन्य ट्रेन का वहां से गुजरना है। मणि ने पहली वंदे भारत ट्रेन बनाने वाली टीम का नेतृत्व किया था। मणि ने कहा, अगर यह सिर्फ पहली ट्रेन के पटरी से उतरने की बात होती तो इतने लोग हताहत नहीं होते।
Credit : Amar Ujala
![[Image: odisha-train-accident_1685762753.jpeg?w=674&dpr=1.0]](https://staticimg.amarujala.com/assets/images/2023/06/03/750x506/odisha-train-accident_1685762753.jpeg?w=674&dpr=1.0)
मौत के मुंह से वापस आए लोग कहते हैं कि मानो देवदूतों ने आकर उन्हें बचाया है। वहां, हर शख्स की अपनी कहानी है, जिसमें वह खुद भी एक किरदार है और जो खौफनाक मंजर देखा, उसे शायद ताउम्र नहीं भुला पाएं। हर तरफ क्षत-विक्षत शव और घायलों की चीख-पुकार के बीच दो-ढाई साल का बच्चा मां की लाश से चिपककर रोते-रोते दम तोड़ देता है।
जमीन पर लाशों के ढेर में बेटे को तलाशते हुए एक बाप की आंखें पथरा गईं। एक पल पहले साथ में बैठकर जिस बहन के साथ घर-परिवार की बातें हो रही थीं, उस भाई के हाथ में अब बस बहन का हैंड बैग बचा है। एक मां 26 साल के बेटे की लाश देखकर बेसुध पड़ी है। एक पत्नी बदहवासी में आंसुओं की धारा के बीच पति को तलाश रही है। लोगों की आपबीती सुनकर दिल दहल जाता है, कलेजा बाहर आने लगता है और दिमाग सुन्न रह जाता है।
बीच में ही छोड़ गया
मालदा से 26 वर्षीय बेटे अशरफ के साथ चेन्नई जा रहीं शबाना बेगम को जैसे ही बेटे की लाश दिखती है, तो वह बेसुध हो जाती हैं। लोग उन्हें पानी पिलाते हैं, तो होश में आने के बाद फिर रोने लगती हैं और बताती हैं कि घर पर बहू और दो छोटे-छोटे पोते हैं। बेटे की लाश देखते हुए बस यही शिकायत करती हैं, यूं बीच में छोड़कर क्यों चला गया।
दूसरी जिंदगी मिली
हादसे में सुरक्षित बचे एक परिवार ने बताया कि उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा है कि वे बच गए। पति-पत्नी और बेटी को एक खरोंच भी नहीं आई।
ऐसा मंजर नहीं देखा
एक यात्री ने बताया शाम करीब 7 बजे जब हादसा हुआ, तो ज्यादातर लोग जगे हुए ही थे। तेज धमाके और झटके के साथ ट्रेन रुकी। समझ ही नहीं आया कि क्या हुआ है। नीचे उतरकर देखा, तो रूह कंपा देने वाला मंजर था।
ओडिशा के बालासोर के सुगो के रहने वाले रामचंदर लाशों के ढेर में अपने 8 वर्ष के बच्चे को तलाश रहे थे। उन्होंने बताया कि वे बेटे को लेकर कोरोमंडल एक्सप्रेस से चेन्नई जा रहे थे। रात से बेटे की तलाश कर रहे हैं, लेकिन कहीं मिल ही नहीं रहा है। पुलिस से पूछा, तो उन्होंने यहां लाशों के ढेर की तरफ भेज दिया है। इसके बाद रामचंदर पथराई आंखों से फिर लाशों के चेहरे देखने लगते हैं। उनकी जुबां पर बार-बार बस यही आता है कि कहां है...रे, मिल ही नहीं रहा है।
हमें देवदूतों ने बचाया
बिहार के मधेपुरा के सनी कहते हैं। वे जनरल कोच में सवार थे। आस-पास के किसी भी शख्स को नहीं जानते। जब हादसा हुआ, तो उन्हें लगा कि वे शायद आज नहीं बच पाएंगे। लेकिन, मानो कोई करिश्मा हुआ हो और किसी देवदूत ने आकर उन्हें बचाया हो। आसपास के ज्यादातर लोग नहीं बच सके। सनी ने बताया कि ट्रेन से निकलने के बाद वे बेहोश हो गए थे, जब आंखें खुलीं, तो अस्पताल में थे। उन्हें हल्की चोट आई है।
बालासोर अस्पताल में भर्ती जगदेब पात्रा ने बताया कि हादसे में उनके दोनों हाथ टूट गए हैं। वे चेन्नई जा रहे थे। मुकेश पंडित भी घायल हैं। बताया, वह चेन्नई जाने के लिए कोरोमंडल एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे थे, जब हादसा हुआ, वह तभी बेहोश हो गए थे। होश आया तो बहुत ज्यादा दर्द महसूस कर रहे थे।
मौत का हाहाकार...मुर्दाघर में शवों के ढेर
मौत का हाहाकार भी छाया हुआ है। सफेद कपड़े में लिपटे शवों के ढेर अस्पताल के मुर्दाघर में नजर आ रहे हैं। इनमें से अधिकतर की पहचान नहीं हो सकी है। रेल सेवा रुकने व बाधित रहने से अधिकतर के रिश्तेदार बालासोर नहीं पहुंच पा रहे हैं। पश्चिम बंगाल से कई लोग अस्पतालों और मुर्दाघरों में पहुंच कर अपने परिजनों व मित्रों को बदहवासी में तलाश रहे हैं। साथ में प्रार्थना भी कर रहे हैं, वे किसी तरह जीवित मिल जाएं।
सिर्फ पहली ट्रेन के डिब्बे पलटते तो नहीं होती इतनी बड़ी दुर्घटना
इंटीग्रल कोच फैक्टरी, चेन्नई के पूर्व महाप्रबंधक सुधांशु मणि ने प्रथमदृष्टया दोनों लोको पायलटों की किसी भी गलती से इन्कार किया। उन्होंने कहा, बड़े पैमाने पर दुर्घटना का प्राथमिक कारण पहली ट्रेन के डिब्बों का पटरी से उतरना और उसी वक्त दूसरी दिशा से आ रही तेज रफ्तार अन्य ट्रेन का वहां से गुजरना है। मणि ने पहली वंदे भारत ट्रेन बनाने वाली टीम का नेतृत्व किया था। मणि ने कहा, अगर यह सिर्फ पहली ट्रेन के पटरी से उतरने की बात होती तो इतने लोग हताहत नहीं होते।
Credit : Amar Ujala