05-14-2023, 01:39 PM
नई दिल्ली. ट्रेन की तुरंत कंफर्म टिकट प्राप्त करने के लिए तत्काल टिकट प्रणाली (Tatkal Ticket) का सहारा लिया जाता है. तत्काल टिकट ट्रेन छूटने के एक दिन पहले बुक की जाती है. अगर लोगों को अचानक कहीं जाने की जरूरत पड़ती है तो वह तत्काल टिकट ही बुक कराते हैं. संभव है कि आपने भी कई बार ऐसा किया होगा. तत्काल टिकट बुक करते समय क्या आपने कभी गौर किया है कि खुद से या फिर किसी इंटरनेट कैफे से तत्काल टिकट बुक करने में काफी परेशानी होती है. इसके लिए आपको सबकुछ पहले से तैयार रखना होता है. इसके बावजूद बहुत तेजी से तत्काल टिकट खत्म हो जाती हैं और आप कंफर्म टिकट हासिल करने से चूक जाते हैं.
क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है. आज हम आपको इसके पीछे की बेहद सरल लेकिन दिलचस्प वजह बताएंगे. यहां सारा खेल कनेक्टविटी का होता है. मुख्य बिंदु पर आने से पहले भारत के रिजर्वेशन सिस्टम के बारे थोड़ा जानना जरूरी है. भारतीय रेल का पैसेंजर रिजर्वेशन सिस्टम 4 क्षेत्रों में बंटा है. दिल्ली, मुबंई, चेन्नई और कोलकाता. इन चारों ही स्थानों को ऑप्टिकल फाइबर के जरिए एक दूसरे से जोड़ा गया है. देश का हर रेलवे स्टेशन भी इसी तरह ऑप्टिकल फाइबर से जुड़ा हुआ है. अगर दिल्ली के आसपास किसी स्टेशन पर टिकट बुक हो रही है तो वह दिल्ली पीआरएस के जरिए ही होगी.
ये भी पढ़ें- बच नहीं पाएंगे बिना टिकट यात्री, सख्ती ऐसी कि एक TC ने वसूला 2.25 करोड़ का जुर्माना, हर दिन 122 लोगों को पकड़ा
अब मेन बात
इन चारों जगहों पर रेलवे के सर्वर लगे हुए हैं. इन सर्वर के जरिए ही टिकट जेनरेट होती है. अब यहां महत्वपूर्ण है कनेक्टविटी. ये चारों सर्वर पहले से आपस में जुड़े होते हैं. इन सर्वर के जरिए टिकट काउंटर से लेकर आईआरसीटीसी की वेबसाइट समेत कई अन्य सेवाएं काम कर रही होती हैं. रेलवे स्टेशन के टिकट काउंटर का इन सर्वर के जोड़ से सीधा कनेक्शन होता है. इस कनेक्शन के बीच में कोई रुकावट नहीं होती है. यह काउंटर सर्वर की प्राथमिकता पर होते हैं. इसलिए टिकट काउंटर से टिकट बहुत जल्दी बुक होती है.
लैपटॉप-मोबाइल से क्यों नहीं होती जल्दी बुक
आईआरसीटीसी की वेबसाइट भी इस सर्वर से जुड़ी होती है. लेकिन वह सीधे यहां से कनेक्टेड नहीं होती है. सर्वर और साइट के बीच में इंटरनेट क्लाइंट, वेब सर्वर और फायरवॉल होती है. इस फायवॉल से कनेक्टेड होती है भारतीय रेलवे की वेबसाइट और आईआरसीटीसी का इंटरनेट बुकिंग सिस्टम. इसलिए इंटरनेट से टिकट बुक करने में समय लगता है और तब तक सारी टिकट बिक जाती हैं. आपको बता दें कि इस सर्वर से चार्टिंग सिस्टम और इंक्वायरी भी डायरेक्ट कनेक्टेड होती है.
अब मेन बात
इन चारों जगहों पर रेलवे के सर्वर लगे हुए हैं. इन सर्वर के जरिए ही टिकट जेनरेट होती है. अब यहां महत्वपूर्ण है कनेक्टविटी. ये चारों सर्वर पहले से आपस में जुड़े होते हैं. इन सर्वर के जरिए टिकट काउंटर से लेकर आईआरसीटीसी की वेबसाइट समेत कई अन्य सेवाएं काम कर रही होती हैं. रेलवे स्टेशन के टिकट काउंटर का इन सर्वर के जोड़ से सीधा कनेक्शन होता है. इस कनेक्शन के बीच में कोई रुकावट नहीं होती है. यह काउंटर सर्वर की प्राथमिकता पर होते हैं. इसलिए टिकट काउंटर से टिकट बहुत जल्दी बुक होती है.
लैपटॉप-मोबाइल से क्यों नहीं होती जल्दी बुक
आईआरसीटीसी की वेबसाइट भी इस सर्वर से जुड़ी होती है. लेकिन वह सीधे यहां से कनेक्टेड नहीं होती है. सर्वर और साइट के बीच में इंटरनेट क्लाइंट, वेब सर्वर और फायरवॉल होती है. इस फायवॉल से कनेक्टेड होती है भारतीय रेलवे की वेबसाइट और आईआरसीटीसी का इंटरनेट बुकिंग सिस्टम. इसलिए इंटरनेट से टिकट बुक करने में समय लगता है और तब तक सारी टिकट बिक जाती हैं. आपको बता दें कि इस सर्वर से चार्टिंग सिस्टम और इंक्वायरी भी डायरेक्ट कनेक्टेड होती है.
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क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है. आज हम आपको इसके पीछे की बेहद सरल लेकिन दिलचस्प वजह बताएंगे. यहां सारा खेल कनेक्टविटी का होता है. मुख्य बिंदु पर आने से पहले भारत के रिजर्वेशन सिस्टम के बारे थोड़ा जानना जरूरी है. भारतीय रेल का पैसेंजर रिजर्वेशन सिस्टम 4 क्षेत्रों में बंटा है. दिल्ली, मुबंई, चेन्नई और कोलकाता. इन चारों ही स्थानों को ऑप्टिकल फाइबर के जरिए एक दूसरे से जोड़ा गया है. देश का हर रेलवे स्टेशन भी इसी तरह ऑप्टिकल फाइबर से जुड़ा हुआ है. अगर दिल्ली के आसपास किसी स्टेशन पर टिकट बुक हो रही है तो वह दिल्ली पीआरएस के जरिए ही होगी.
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अब मेन बात
इन चारों जगहों पर रेलवे के सर्वर लगे हुए हैं. इन सर्वर के जरिए ही टिकट जेनरेट होती है. अब यहां महत्वपूर्ण है कनेक्टविटी. ये चारों सर्वर पहले से आपस में जुड़े होते हैं. इन सर्वर के जरिए टिकट काउंटर से लेकर आईआरसीटीसी की वेबसाइट समेत कई अन्य सेवाएं काम कर रही होती हैं. रेलवे स्टेशन के टिकट काउंटर का इन सर्वर के जोड़ से सीधा कनेक्शन होता है. इस कनेक्शन के बीच में कोई रुकावट नहीं होती है. यह काउंटर सर्वर की प्राथमिकता पर होते हैं. इसलिए टिकट काउंटर से टिकट बहुत जल्दी बुक होती है.
लैपटॉप-मोबाइल से क्यों नहीं होती जल्दी बुक
आईआरसीटीसी की वेबसाइट भी इस सर्वर से जुड़ी होती है. लेकिन वह सीधे यहां से कनेक्टेड नहीं होती है. सर्वर और साइट के बीच में इंटरनेट क्लाइंट, वेब सर्वर और फायरवॉल होती है. इस फायवॉल से कनेक्टेड होती है भारतीय रेलवे की वेबसाइट और आईआरसीटीसी का इंटरनेट बुकिंग सिस्टम. इसलिए इंटरनेट से टिकट बुक करने में समय लगता है और तब तक सारी टिकट बिक जाती हैं. आपको बता दें कि इस सर्वर से चार्टिंग सिस्टम और इंक्वायरी भी डायरेक्ट कनेक्टेड होती है.
अब मेन बात
इन चारों जगहों पर रेलवे के सर्वर लगे हुए हैं. इन सर्वर के जरिए ही टिकट जेनरेट होती है. अब यहां महत्वपूर्ण है कनेक्टविटी. ये चारों सर्वर पहले से आपस में जुड़े होते हैं. इन सर्वर के जरिए टिकट काउंटर से लेकर आईआरसीटीसी की वेबसाइट समेत कई अन्य सेवाएं काम कर रही होती हैं. रेलवे स्टेशन के टिकट काउंटर का इन सर्वर के जोड़ से सीधा कनेक्शन होता है. इस कनेक्शन के बीच में कोई रुकावट नहीं होती है. यह काउंटर सर्वर की प्राथमिकता पर होते हैं. इसलिए टिकट काउंटर से टिकट बहुत जल्दी बुक होती है.
लैपटॉप-मोबाइल से क्यों नहीं होती जल्दी बुक
आईआरसीटीसी की वेबसाइट भी इस सर्वर से जुड़ी होती है. लेकिन वह सीधे यहां से कनेक्टेड नहीं होती है. सर्वर और साइट के बीच में इंटरनेट क्लाइंट, वेब सर्वर और फायरवॉल होती है. इस फायवॉल से कनेक्टेड होती है भारतीय रेलवे की वेबसाइट और आईआरसीटीसी का इंटरनेट बुकिंग सिस्टम. इसलिए इंटरनेट से टिकट बुक करने में समय लगता है और तब तक सारी टिकट बिक जाती हैं. आपको बता दें कि इस सर्वर से चार्टिंग सिस्टम और इंक्वायरी भी डायरेक्ट कनेक्टेड होती है.
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