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'कनाडा में ही बना दो खालिस्तान', ट्रूडो को मिला भारतवंशी नेता से करारा जवाब
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कनाडा स्थित ब्रिटिश कोलंबिया के प्रीमियर और पंजाबी मूल के भारतवंशी उज्ज्वल दोसांझ ने भी ट्रूडो को उसी की भाषा में जवाब देते हुए कहा कि अगर कुछ वर्ग खालिस्तान चाहता है तो कनाडा में ही खालिस्तान बना दो। उन्होंने कहा कि भारत और कनाडा को को आपसी बात...

नेशनल डैस्क : भारत-कनाडा के रिश्तों में दरार आ चुकी है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने आरोप लगाया है कि सिख नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के पीछे भारत सरकार हो सकती है, हालांकि भारत ने उनके द्वारा लगाए गए आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया। मामला आग की तरफ फैला तो कनाडा ने भारत के शीर्ष राजनयिक को भी निष्कासित कर दिया। वहीं भारत ने भी जवाबी कार्रवाई में दिल्ली स्थित कनाडाई उच्चायोग को समन भेजा और एक सीनियर डिप्लोमैट को निष्कासित करने का फैसला किया। उस राजनयिक को भारत छोड़ने के लिए पांच दिन का समय दिया गया। ट्रूडो खालिस्तान को समर्थन देने के चक्कर में अपने देश के लोगों द्वारा ही अब आलोचनाओं का सामना कर रहे हैं। इस बीच कनाडा स्थित ब्रिटिश कोलंबिया के प्रीमियर और पंजाबी मूल के भारतवंशी उज्ज्वल दोसांझ ने भी ट्रूडो को उसी की भाषा में जवाब देते हुए कहा कि अगर कुछ वर्ग खालिस्तान चाहता है तो कनाडा में ही खालिस्तान बना दो।

अलबर्टा या सस्केचेवान में बना दो खालिस्तान

इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू के दौरान दोसांझ ने कहा कि भारत और कनाडा को को आपसी बात करनी चाहिए। उन्होंने कहा, ''खालिस्तान मुद्दे को किनारे रखें और बातचीत में शामिल हों। खालिस्तान की मांग करने वाले कनाडाई भारत को तोड़ने वाले नहीं हैं। भारत में सिख खालिस्तान नहीं चाहते। मैं इस साल की शुरुआत में मई में पंजाब में था और मैं इसकी पुष्टि कर सकता हूं। तो फिर भारत को इन नारे लगाने वालों की इतनी चिंता क्यों होनी चाहिए? विरोध और जनमत संग्रह लोकतंत्र का हिस्सा हैं। यहां तक कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी फैसला सुनाया है कि खालिस्तान मांगना तब तक अपराध नहीं है जब तक आप हिंसक नहीं हैं। कनाडा के केवल 2 प्रतिशत लोग ही सिख हैं। यदि कनाडा में इस छोटे समुदाय का एक वर्ग खालिस्तान चाहता है, तो उन्हें अलबर्टा या सस्केचेवान में इसे प्राप्त करने दें।''

वकालत करने वालों ने कभी भारत में कदम नहीं रखा

दोसांझ ने कहा, ''यह आंदोलन 1970 के दशक से मौजूद है जब खालिस्तान विचारक जगजीत सिंह चौहान पहली बार कनाडा पहुंचे थे। इसके विकास का एक हिस्सा इस तथ्य से उपजा है कि इन व्यक्तियों का कनाडा से सीमित संबंध है, जो अक्सर अपने निवास स्थान से अलग-थलग महसूस करते हैं। उनमें कनाडा सरकार के बारे में समझ की कमी है और वे भारत के खिलाफ शिकायतें रखते रहते हैं। 1980 के दशक के दौरान भारत में सिखों पर अत्याचार हुए लेकिन वे आगे बढ़ गए। कनाडा में, ये शिकायतें उनके दिमाग और दिल में रहती हैं। वे सोशल नेटवर्क पर सक्रिय रहते हैं और उन मंदिरों में जाते हैं जहां भावनाएं भड़कती हैं। खालिस्तान की वकालत करने वालों में से कई लोगों ने कभी भारत में कदम नहीं रखा। कनाडा में पैदा हुए युवाओं ने कभी भारत का अनुभव नहीं किया है और वे अपने माता-पिता की कहानियों से प्रभावित हैं। जो लोग नए हैं वे शरणार्थी का दर्जा पाने की प्रक्रिया में हो सकते हैं। संभावित रूप से भारत के खिलाफ सबूत गढ़ सकते हैं।''

ट्रूडो के आरोपों पर दिया ये जवाब

वहीं ट्रूडो द्वारा भारत पर लगाए गए आरोपों पर राय देते हुए दोसांझ ने कहा, ''भारत सरकार ने इस आरोप को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। हालांकि, प्रधानमंत्री ट्रूडो ने अपना बयान दिया है और मुझे लगता है कि उनके पास इसके लिए कुछ आधार हैं। मेरी एकमात्र चिंता यह है कि उन्होंने कोई सबूत नहीं दिया है। यह बेहतर होता यदि आरसीएमपी (रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस) ने अपनी जांच पूरी कर ली होती, यदि आवश्यक हो तो फिर पीएम अपना बयान देते।''

दोनों सरकारों के बीच विश्वास की गहरी कमी

इसके अलावा दोसांझ ने भारत-कनाडाई संबंध पर अपने विचार रखते हुए कहा, ''इस समय, दोनों देशों में नेतृत्व परिवर्तन से ही संबंधों में सुधार हो सकता है। दोनों सरकारों के बीच विश्वास की गहरी कमी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सशक्त राष्ट्रवाद के बारे में हैं, जबकि ट्रूडो अधिक जागृत दृष्टिकोण अपनाते हैं, और दोनों इसे प्रदर्शित करने की आवश्यकता महसूस करते हैं। इस गतिरोध को तोड़ने के लिए हमें परिपक्वता और बड़े दिल की आवश्यकता है।''
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