05-07-2023, 12:47 PM
अब प्रदूषण पैदा करने वाली प्लास्टिक से देश की सड़कें, फुटपाथ और घरों की दीवारें बनाई जाएंगी। प्लास्टिक से बनने वाली सड़कें अभी बन रही सड़कों की तुलना में ज्यादा मजबूत और कामयाब होंगी।
प्लास्टिक के कचरे को खत्म करने का आइडिया
केंद्र सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार दिल्ली रिसर्च इम्प्लीमेंटेशन एंड इनोवेशन (DRIIV) पहले ही कंक्रीट की ताकत वाली टाइलों का लैब और प्रोटोटाइप परीक्षण कर चुका है। DRIIV ने और टेस्टिंग के लिए फंडिंग मांगी है। वैज्ञानिकों के अनुसार, हाई पावर वाली टाइलें न केवल प्लास्टिक कचरे को खत्म करेंगी बल्कि लाल मिट्टी के खतरे को भी दूर करती हैं। हालांकि अभी तक जो टाइलें डेवलेप की गईं, वो 20 टन तक के वजन को संभाल सकती हैं। लेकिन अभी इस पर और काम किया जा सकता है। इसे और मजबूत बनाया जा सकता है।
वाहनों के वजन सहने के लिए कर रहे तैयार
सीएसआईआर-एनपीएल के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ राजीव कुमार सिंह ने कहा, 'इस नई टेक्नोलॉजी का डेवलेपमेंट पिछली रिसर्च के आधार पर ही किया गया। जहां हमने हमने फुटपाथ, साइकिलिंग ट्रैक, छतों और दीवारों के लिए टाइलें डिजाइन कीं। अब हमें पॉलिमर से बने मैटेरिलयल को डेवलेप करने की जरूरत है, जो वाहनों की आवाजाही से बने दबाव को सहन कर सके।
भारत की सड़कों के लिए बिल्कुल परफेक्ट
इसलिए, NPL में केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (CRRI) के साथ रिसर्च और डेवलेप किया गया और सड़क की टाइलें बनाई गईं। अब तक हम लैब में टेस्टिंग वाली टाइलों को बनाने में कामयाब रहे। इन टाइलों का घनत्व भी ज्यादा है। ये कंक्रीट से बनी टाइलों जितनी ही सख्त हैं और लचीली भी। भारत की सड़कों के लिए ये बिल्कल ठीक हैं। अब तक केवल स्कैंडिनेवियाई देशों ने इस तरह के मैटेरियल का इस्तेमाल करके सड़कें बनाई जा रही हैं।
बार-बार सड़कों को खोदने की परेशानी खत्म
सिंह ने बताया कि हाई पावर वाली प्लास्टिक टाइलें भारतीय सड़कों में आने वाली परेशानियों को भी कम कर देगा। हम अक्सर देखते हैं कि सड़कों के नीचे पाइप लाइन बिछाने के लिए उसे खोदा जाता है। इसमें पूरी सड़क खराब हो जाती है और पैसे भी खर्च होते हैं। वहीं प्लास्टिक टाइलों से बनी सड़कों को तोड़ना नहीं पड़ेगा। टाइलों के हिस्से को हटाकर फिर से लगाया जा सकता है। इसके अलावा इसमें गड्ढे भी नहीं होंगे। प्रोटोटाइप टाइल का वजन 900 ग्राम है और इसका आकार 9 गुना 6 इंच का है। फील्ड टेस्ट के लिए वैज्ञानिकों को एक वर्गमीटर क्षेत्रफल वाली टाइलों की जरूरत होगी जो ढलाई के लिए महंगी है, इसलिए उन्होंने उद्योगों से समर्थन मांगा है।
प्लास्टिक के कचरे को खत्म करने का आइडिया
केंद्र सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार दिल्ली रिसर्च इम्प्लीमेंटेशन एंड इनोवेशन (DRIIV) पहले ही कंक्रीट की ताकत वाली टाइलों का लैब और प्रोटोटाइप परीक्षण कर चुका है। DRIIV ने और टेस्टिंग के लिए फंडिंग मांगी है। वैज्ञानिकों के अनुसार, हाई पावर वाली टाइलें न केवल प्लास्टिक कचरे को खत्म करेंगी बल्कि लाल मिट्टी के खतरे को भी दूर करती हैं। हालांकि अभी तक जो टाइलें डेवलेप की गईं, वो 20 टन तक के वजन को संभाल सकती हैं। लेकिन अभी इस पर और काम किया जा सकता है। इसे और मजबूत बनाया जा सकता है।
वाहनों के वजन सहने के लिए कर रहे तैयार
सीएसआईआर-एनपीएल के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ राजीव कुमार सिंह ने कहा, 'इस नई टेक्नोलॉजी का डेवलेपमेंट पिछली रिसर्च के आधार पर ही किया गया। जहां हमने हमने फुटपाथ, साइकिलिंग ट्रैक, छतों और दीवारों के लिए टाइलें डिजाइन कीं। अब हमें पॉलिमर से बने मैटेरिलयल को डेवलेप करने की जरूरत है, जो वाहनों की आवाजाही से बने दबाव को सहन कर सके।
भारत की सड़कों के लिए बिल्कुल परफेक्ट
इसलिए, NPL में केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (CRRI) के साथ रिसर्च और डेवलेप किया गया और सड़क की टाइलें बनाई गईं। अब तक हम लैब में टेस्टिंग वाली टाइलों को बनाने में कामयाब रहे। इन टाइलों का घनत्व भी ज्यादा है। ये कंक्रीट से बनी टाइलों जितनी ही सख्त हैं और लचीली भी। भारत की सड़कों के लिए ये बिल्कल ठीक हैं। अब तक केवल स्कैंडिनेवियाई देशों ने इस तरह के मैटेरियल का इस्तेमाल करके सड़कें बनाई जा रही हैं।
बार-बार सड़कों को खोदने की परेशानी खत्म
सिंह ने बताया कि हाई पावर वाली प्लास्टिक टाइलें भारतीय सड़कों में आने वाली परेशानियों को भी कम कर देगा। हम अक्सर देखते हैं कि सड़कों के नीचे पाइप लाइन बिछाने के लिए उसे खोदा जाता है। इसमें पूरी सड़क खराब हो जाती है और पैसे भी खर्च होते हैं। वहीं प्लास्टिक टाइलों से बनी सड़कों को तोड़ना नहीं पड़ेगा। टाइलों के हिस्से को हटाकर फिर से लगाया जा सकता है। इसके अलावा इसमें गड्ढे भी नहीं होंगे। प्रोटोटाइप टाइल का वजन 900 ग्राम है और इसका आकार 9 गुना 6 इंच का है। फील्ड टेस्ट के लिए वैज्ञानिकों को एक वर्गमीटर क्षेत्रफल वाली टाइलों की जरूरत होगी जो ढलाई के लिए महंगी है, इसलिए उन्होंने उद्योगों से समर्थन मांगा है।