04-09-2023, 01:46 PM
नई दिल्ली : भारत में एक ऐसा ऐतिहासिक पुल है, जिसे देखने लोग दूर-दूर से आते हैं। लेकिन खास बात यह है कि इसका अभी तक उद्घाटन नहीं हुआ है। हम बात कर रहे हैं कोलकाता के हावड़ा ब्रिज (Howrah Bridge) की। अंग्रेजों ने इस पुल का काम शुरू करवाया था और 80 वर्षों से यह ब्रिज लोगों के काम आ रहा है। समुद्र में तैरते इस ब्रिज ने दूसरे विश्व युद्ध की बमबारी भी झेली है। जापान का एक बम इस पुल के करीब आकर ही गिरा था। इसके बाद यह पुल आजादी की लड़ाई और बंगाल के भयानक अकाल का भी गवाह रहा। इस पुल का निर्माण साल 1936 में शुरू हुआ था। इसे 3 फरवरी 1943 को जनता को समर्पित किया गया था। हालांकि, इस ब्रिज का औपचारिक उद्घाटन कभी नहीं हुआ। आइए इस ब्रिज से जुड़ी कुछ खास बातें जानते हैं।
बिना नट-बोल्ट के इस्तेमाल के दो पायों पर टिका ब्रिज
हावड़ा ब्रिज को बनाने में कहीं भी नट-बोल्ट का इस्तेमाल नहीं हुआ है। इसके स्थान पर धातु की कीलों यानी रिवेट्स का इस्तेमाल हुआ है। इस ब्रिज के बनने के बाद इस पर पहली बार एक ट्राम गुजरी थी। इसके अलावा यह पूरा ब्रिज केवल नदी के दोनों किनारों पर बने दो पायों पर टिका है। हावड़ा ब्रिज के इन दो पायों की ऊंचाई 280 फीट है। वहीं, इन दोनों पायों के बीच की दूरी डेढ़ हजार फीट है। हावड़ा ब्रिज उस समय अपनी तरह का तीसरा सबसे लंबा ब्रिज था।
पहले था पीपे का पुल
हावड़ा ब्रिज की जगह पले पीपे का पुल था। कोलकाता और हावड़ा के बीच हुगली नदी बहती है। लोगों को इस पार से उस पार जाने के लिए पुल की जरूरत थी। ऐसे में नदी पर पीपे का पुल बनवाया गया था। साल 1874 में सर ब्रेडफोर्ड लेसली ने यह पीपे का पुल बनवाया था। यह पीपे का पुल 22 लाख रुपये की लागत से बना था। इसकी लंबाई 1528 फीट और चौड़ाई 62 फीट थी। नदी में जब कोई बड़ा जहाज आता था, तब इस पुल को बीच में से खोल दिया जाता था। साल 1906 में हावड़ा स्टेशन बना। इसके बाद पुल पर ट्रैफिक बढ़ने लगा और नए पुल की जरूरत महसूस होने लगी। यहां फ्लोटिंग ब्रिज यानी तैरता हुआ पुल बनाने का फैसला लिया गया था। लेकिन पहला विश्व युद्ध शुरू हो जाने से काम शुरू नहीं हो सका था।
बिना नट-बोल्ट के इस्तेमाल के दो पायों पर टिका ब्रिज
हावड़ा ब्रिज को बनाने में कहीं भी नट-बोल्ट का इस्तेमाल नहीं हुआ है। इसके स्थान पर धातु की कीलों यानी रिवेट्स का इस्तेमाल हुआ है। इस ब्रिज के बनने के बाद इस पर पहली बार एक ट्राम गुजरी थी। इसके अलावा यह पूरा ब्रिज केवल नदी के दोनों किनारों पर बने दो पायों पर टिका है। हावड़ा ब्रिज के इन दो पायों की ऊंचाई 280 फीट है। वहीं, इन दोनों पायों के बीच की दूरी डेढ़ हजार फीट है। हावड़ा ब्रिज उस समय अपनी तरह का तीसरा सबसे लंबा ब्रिज था।
पहले था पीपे का पुल
हावड़ा ब्रिज की जगह पले पीपे का पुल था। कोलकाता और हावड़ा के बीच हुगली नदी बहती है। लोगों को इस पार से उस पार जाने के लिए पुल की जरूरत थी। ऐसे में नदी पर पीपे का पुल बनवाया गया था। साल 1874 में सर ब्रेडफोर्ड लेसली ने यह पीपे का पुल बनवाया था। यह पीपे का पुल 22 लाख रुपये की लागत से बना था। इसकी लंबाई 1528 फीट और चौड़ाई 62 फीट थी। नदी में जब कोई बड़ा जहाज आता था, तब इस पुल को बीच में से खोल दिया जाता था। साल 1906 में हावड़ा स्टेशन बना। इसके बाद पुल पर ट्रैफिक बढ़ने लगा और नए पुल की जरूरत महसूस होने लगी। यहां फ्लोटिंग ब्रिज यानी तैरता हुआ पुल बनाने का फैसला लिया गया था। लेकिन पहला विश्व युद्ध शुरू हो जाने से काम शुरू नहीं हो सका था।