08-16-2023, 12:47 PM
रेलवे के बुकिंग क्लर्क को नौकरी से हाथ धोना पड़ा, वह भी महज 6 रुपये के लिए। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले में क्लर्क की याचिका खारिज कर दी। क्लर्क ने यात्री के छह रुपये वापस नहीं किए थे। यात्री आरपीएफ के जवान थे और विजिलेंस की टीम ने क्लर्क को पकड़ा था।
हाइलाइट्स
ऑफिस की ऑलमारी में मिले 450 रुपये
मामला 31 जुलाई, 1995 को कमर्शल क्लर्क के रूप में नियुक्त किए गए राजेश वर्मा से जुड़ा है। कुर्ला टर्मिनस में नियुक्त वर्मा को यात्रियों से अधिक किराया वसूलने के आरोप में रेलवे प्रशासन की डिसिप्लिनरी अथॉरिटी ने जांच के बाद 31 जनवरी, 2002 को नौकरी से निकाल दिया था। इससे पहले रेलवे की विजलेंस टीम ने 30 अगस्त, 1997 को दो आरपीएफ कॉन्स्टेबल को फर्जी यात्री बनाकर टिकट खरीदने के लिए भेजा था। एक कॉन्स्टेबल ने वर्मा को 500 रुपये देकर कुर्ला से आरा का टिकट मांगा। टिकट की कीमत 214 रुपये थी, लेकिन वर्मा ने कॉन्स्टेबल को 286 रुपये की बजाय 280 रुपये ही लौटाए। यानी 6 रुपये कम दिए। इसके बाद विजलेंस टीम ने छापेमारी की। इस दौरान वर्मा के निकट स्थित ऑलमारी से 450 रुपये मिले और उसके पास रेलवे कैश में 58 रुपये कम मिले।
गलती स्वीकार करने के संकेत
वर्मा को जब इस मामले में रेलवे अथॉरिटी से कोई राहत नहीं मिली तो, उसने केंद्रीय प्रशासकीय न्यायाधिकरण (कैट) में आवेदन किया। कैट ने वर्मा को जब कोई राहत नहीं दी, तो उसने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता (वर्मा) ने जब रेलवे अथॉरिटी के सामने मर्सी (दया) के लिए अर्जी दी, तो उसने नए सिरे से नौकरी में रखने का आग्रह किया। यह एक तरह से याचिकाकर्ता द्वारा अपनी गलती को स्वीकार करने का संकेत देता है। इस मामले में वर्मा को अपना पक्ष रखने का अवसर मिला है। याचिकाकर्ता ने फर्जी यात्री बनकर आए कॉन्स्टेबल को लेकर कोई सवाल नहीं उठाया है।
यह रहीं बचाव पक्ष की दलीलें
सुनवाई के दौरान वर्मा की ओर से पेश सीनियर ऐडवोकेट मिहिर देसाई ने कहा कि विजलेंस टीम ने नियमों का पालन नहीं किया है। रेलवे विजलेंस मैन्युअल के मुताबिक, केवल गैजेटेड अधिकारी को ही फर्जी यात्री बनाकर भेजा जा सकता है, मगर इस मामले में कॉन्स्टेबल की मदद ली गई है। जिस ऑलमारी में पैसे मिले हैं, उस पर अकेले याचिकाकर्ता का नियंत्रण नहीं था। इस मामले में रेलवे अथॉरिटी ने सारा निष्कर्ष अनुमान के आधार पर निकाला है। मेरे मुवक्किल ने चेंज पैसे उपलब्ध नहीं होने के चलते पैसे नहीं लौटाए थे। उसने यात्री को रुकने को कहा था, पर वह नहीं रुका। वहीं रेलवे की ओर से पेश वकील सुरेश कुमार ने कैट के आदेश को कायम रखने का आग्रह किया।
हाइलाइट्स
- 31 जुलाई, 1995 को कमर्शल क्लर्क की लगी थी नौकरी
- दो साल बाद 1997 में ही मामले में फंस गए थे क्लर्क
- 500 रुपये देकर कुर्ला से आरा का मांगा था टिकट
- क्लर्क ने 6 रुपये चेंज न होने की बात कही, नहीं दिए चेंज
ऑफिस की ऑलमारी में मिले 450 रुपये
मामला 31 जुलाई, 1995 को कमर्शल क्लर्क के रूप में नियुक्त किए गए राजेश वर्मा से जुड़ा है। कुर्ला टर्मिनस में नियुक्त वर्मा को यात्रियों से अधिक किराया वसूलने के आरोप में रेलवे प्रशासन की डिसिप्लिनरी अथॉरिटी ने जांच के बाद 31 जनवरी, 2002 को नौकरी से निकाल दिया था। इससे पहले रेलवे की विजलेंस टीम ने 30 अगस्त, 1997 को दो आरपीएफ कॉन्स्टेबल को फर्जी यात्री बनाकर टिकट खरीदने के लिए भेजा था। एक कॉन्स्टेबल ने वर्मा को 500 रुपये देकर कुर्ला से आरा का टिकट मांगा। टिकट की कीमत 214 रुपये थी, लेकिन वर्मा ने कॉन्स्टेबल को 286 रुपये की बजाय 280 रुपये ही लौटाए। यानी 6 रुपये कम दिए। इसके बाद विजलेंस टीम ने छापेमारी की। इस दौरान वर्मा के निकट स्थित ऑलमारी से 450 रुपये मिले और उसके पास रेलवे कैश में 58 रुपये कम मिले।
गलती स्वीकार करने के संकेत
वर्मा को जब इस मामले में रेलवे अथॉरिटी से कोई राहत नहीं मिली तो, उसने केंद्रीय प्रशासकीय न्यायाधिकरण (कैट) में आवेदन किया। कैट ने वर्मा को जब कोई राहत नहीं दी, तो उसने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता (वर्मा) ने जब रेलवे अथॉरिटी के सामने मर्सी (दया) के लिए अर्जी दी, तो उसने नए सिरे से नौकरी में रखने का आग्रह किया। यह एक तरह से याचिकाकर्ता द्वारा अपनी गलती को स्वीकार करने का संकेत देता है। इस मामले में वर्मा को अपना पक्ष रखने का अवसर मिला है। याचिकाकर्ता ने फर्जी यात्री बनकर आए कॉन्स्टेबल को लेकर कोई सवाल नहीं उठाया है।
यह रहीं बचाव पक्ष की दलीलें
सुनवाई के दौरान वर्मा की ओर से पेश सीनियर ऐडवोकेट मिहिर देसाई ने कहा कि विजलेंस टीम ने नियमों का पालन नहीं किया है। रेलवे विजलेंस मैन्युअल के मुताबिक, केवल गैजेटेड अधिकारी को ही फर्जी यात्री बनाकर भेजा जा सकता है, मगर इस मामले में कॉन्स्टेबल की मदद ली गई है। जिस ऑलमारी में पैसे मिले हैं, उस पर अकेले याचिकाकर्ता का नियंत्रण नहीं था। इस मामले में रेलवे अथॉरिटी ने सारा निष्कर्ष अनुमान के आधार पर निकाला है। मेरे मुवक्किल ने चेंज पैसे उपलब्ध नहीं होने के चलते पैसे नहीं लौटाए थे। उसने यात्री को रुकने को कहा था, पर वह नहीं रुका। वहीं रेलवे की ओर से पेश वकील सुरेश कुमार ने कैट के आदेश को कायम रखने का आग्रह किया।