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पत्नी को थी नशे की लत, कई मर्दों से थे अवैध संबं
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नीमच: हाईवे किनारे खड़ी महिलाओं के इशारें करती आंखों को देख गाड़ियों की रफ्तार धीमी हो जाती है। रफ्तार धीमी होते ही गाड़ियों के करीब सजी-धजी महिलाएं पहुंचने लगती हैं और साथ चलने की बात करने लगती हैं। एक गाड़ी से हटती हैं तो दूसरी चली आती.. फिर सवालों का सिलसिला शुरू हो जाता है। मैं पसंद नहीं हूं... कितनी उम्र की चाहिए... ऐसे सवालों और हुस्न की नुमाइंदगी से ये महिलाएं ग्राहकों को उलझाती हैं। अफीम की खेती के लिए मशहूर नीमच जिला मुख्यालय (Neemuch village news) से तीन किमी दूर हाईवे पर कुछ ऐसे ही स्थिति होती है। हाईवे किनारे रहने वाले कुछ परिवारों की महिलाएं जिस्मफरोशी में लिप्त हैं। ये उनका परंपरागत पेशा है, जिससे आज भी छुटकारा नहीं मिला है। हांलाकि प्रशासन के लोग इसमें कमी की बात करते हैं लेकिन स्थिति आज भी ज्यादा नहीं बदली है।हाइवे के किनारे ही इनका गांव है। सरेआम ये तैयार होकर सड़क किनारे खड़ा रहती हैं। इनके गांवों के सामने जैसे ही लोगों की गाड़ियां रुकती हैं, ये उनसे सौदा करने पहुंच जाती है। कई बार इनके घर के पुरुष भी इनके लिए ग्राहक ढूंढने आते हैं। इस समाज के लोग इसे परंपरागत पेशा मानते हैं। वहीं, कुछ गैर सरकारी संगठन के लोग लगातार इन्हें मुख्यधारा में जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ बदलाव तो दिखा है लेकिन आज भी इस समाज में बदलाव की बहुत जरूरत है।

नीमच शहर से तीन किमी दूर सजती जिस्म की मंडी
जिला मुख्यालय से करीब तीन किलोमीटर दूर नीमच- महुआ हाईवे पर जीतपुरा गांव है। यह गांव नीमच मनासा और नीमच बाईपास पर स्थित है। एक रास्ता मंदसौर-रतलाम इंदौर की ओर जाता है तो दूसरा राजस्थान के चित्तौड़गढ़ की ओर जाता है। इस चौराहे पर पहुंचते ही चारों ओर कई मकान हैं, जिनके बाहर लड़कियां और महिलाएं बैठी रहती हैं।



कार रुकते ही पहुंच जाती हैं ये
दरअसल, जिस्मफरोश के कार्य में इनका पूरा परिवार लगा होता है। छोटी-छोटी बच्चियों को भी इस काम में परिवार के लोगों ने धकेल दिया है। दिन भर ये महिलाएं हाईवे किनारे ग्राहकों की तलाश में खड़ी रहती हैं। उम्र के हिसाब से महिलाओं की बोली लगती है। कम उम्र की लड़कियों का रेट ज्यादा होता है। वहीं, ज्यादा उम्र पर रेट कम हो जाता है। गाड़ियों के पास आने वाली महिलाएं ग्राहकों से कहती हैं कि अगर हम आपको पसंद नहीं आ रहे हैं, तो अंदर चलो दूसरा दिखाते हैं।

68 गांव में रहते हैं बांछड़ा जाति के लोग
नीमच-मंदसौर जिले में बांछड़ा जाति की आबादी ठीक-ठाक है। दोनों जिलों के 68 गांवों में इस जाति के लोग रहते हैं। मुख्य रूप से इस समुदाय की महिलाएं देह व्यापार में लगी रहती हैं हालांकि समय के साथ कुछ युवक-युवतियों ने अच्छी शिक्षा भी हासिल की। कइयों ने अपने गांव का नाम रोशन किया है। साथ ही परिवार का सम्मान भी बढ़ाया है। सामाजिक दलदल से इस समुदाय के लोग निकल नहीं पा रहे हैं।


पेट पालने की मजबूरी
इस इलाके में सजी सवरी कई मासूम तो कई उम्र दराज महिलाएं दिखाई देंगी। मेकअप से ढके इनके चेहरे चाह कर भी दर्द बयां नहीं कर पा रही है। खूबसूरत चेहरों के पीछे मजबूरियों के दर्द दबाए हैं। नीमच हाईवे पर जब हमारे संवाददाता की गाड़ी रुकी तो मॉडर्न कपड़ों में तैयार युवतियां वहां पहुंचने लगी। इसके बाद साथ चलने को कहने लगी। साथ ही उम्र के हिसाब से रेट भी बता रही थीं। एक युवती ने कहा कि हमारी उम्र कम है, हम दो सौ रुपये लेते हैं। इस काम में बेहद कम उम्र की लड़कियां भी लगी हैं।

मां खोजती है बेटियों के लिए ग्राहक
दरअसल, इस काम में पूरा परिवार लगा होता है। मां अपनी बेटियों के लिए ग्राहक ढूंढती है। घर के पुरुष भी इसमें साथ देते हैं। परिवार के लोग इसे काम समझते हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है। यह जाति एससी में आता है। शिकायतें मिलने पर पुलिस इनके गांवों में कार्रवाई करती है लेकिन फिर से वही काम शुरू हो जाता है।

नीमच के एडिशनल एसपी सुंदर सिंह ने कहा कि समाज के लोगों के उत्थान के लिए योजनाओं बनाई गई है। पुलिस भी शिकायत मिलने पर बकायदा कार्रवाई करती है। तमाम तरह के प्रयास पुलिस की तरफ से किए जा रहे हैं। नाबालिगों को कई बार इस तरह के काम से निकाला गया है। शिकायत मिलने पर हम हमेशा कार्रवाई करते हैं। अभी कोई शिकायत नहीं मिली है।



इस समाज में बदलाव लाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता आकाश चौहान लगातार काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने इसके खिलाफ एचसी में याचिका लगाई है। गंदे धंधे में फंसी मासूम बच्चियों को निकालने के प्रयास लंबे समय से किए जा रहे हैं। मगर प्रशासन से उस तरीके से मदद नहीं मिली। हां, उन्होंने कुछ अधिकारियों का जिक्र किया, जिन्होंने इस समाज को मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि दो हजार के करीब नाबालिग बच्चियां इस गंदे धंधे में हैं। इस समाज को बाहर निकालने के लिए जागरूकता की जरूरत है। इसके साथ ही रोजगार एक बड़ी समस्या है। इनके पास काम नहीं है। काम होगा तो शायद इस समाज के लिए इस दलदल से निकल पाएं।
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